जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं हम नाय ।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाय ।।
अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जीव कहता है कि जब मैं था तब गुरु नहीं थे अर्थात मुझ में अंधकार का प्रवेश था या अहंकार का भाव था, परंतु अब अहम भाव नष्ट हुआ तब मैं गुरु को मानने लगा और उनके सामने मैं अपने को कुछ नहीं समझता था । इस कारण मेरे लिए भगवान का दर्शन होना प्रारम्भ हो गया अर्थात प्रेम की जो गली है वह बहुत सँकरी है जिसमें अहम भाव तथा ईश्वर के प्रति भक्ति दोनों नहीं समा सकते हैं।