आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रगटित होय ।
सो जाने जो जरमुआ, जाकी लाई होय ।।
अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि आग प्रायः धुआँ से जानी जाती है किन्तु जब प्रभु प्रेम की अग्नि किसी के मन में उत्पन्न हो जाती है तो उसको दूसरा कोई नहीं जानता है । उसके ज्ञान को भुक्तभोगी के सिवा अन्य कोई नहीं जान सकता है ।