छिन ही चढ़े छिन उतरे, सो तो प्रेम न होय । अघट प्रेम पिंजरे बसे, प्रेम कहाबै...
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच । हारि चले सो साधु हैं, लागि चले सो...
घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल । दाना तो दुश्मन भला, मूरख का क्या...
घाट का परदा खोलकर, सन्मुख ले दीदार । बाल सनेही साइयां, आवा अंत का यार ।। अर्थ:...
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार । वाके अङ्ग लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ।।...
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह । आशा जीवन मरण की, मन में राखे नाँह...
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह । कह कबीर वा साधु की, हम चरनन...
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ।। अर्थ: गुरु...
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव । कहे कबीर बैकुंठ से, फेर दिया शुकदेव ।।...
कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह । अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह...