दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार । तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे दार ।।...
kabir ke dohe
तन बोहत मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय । कबहुँ के धर्म अगमदयी, कबहुँ गगन समाय...
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर । तब लग जीव कर्मवश, जब लग ज्ञान ना...
दिल का मरहम कोई न मिला, जो मिला सो गर्जी । कहे कबीर बादल फटा, क्यों कर...
तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय । सहजै सब बिधिपाइये, जो मन जोगी होय...
तीर तुपक से जो लड़ै, सो तो शूर न होय । माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै...
तेरा साईं तुझ में, ज्यों पहुन में बास । कस्तूरी का हिरण ज्यों, फिर-फिर ढूँढ़त घास ।।...
ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत । प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ।।...
तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँव तले भी होय । कबहुँ उड़ आँखों पड़े, पीर घनेरी होय...
तीरथ गए से एक फल, सन्त मिलै फल चार । सतगुरु मिले अधिक फल, कहै कबीर बिचार...