अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट । चुंबक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट...
kabir ke dohe
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अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट ।
चुंबक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट
प्रेम पर कबीर के दोहे आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार नेह निबाहन ऐक रास,...