एक ते जान अनंत, अन्य एक हो आय । एक से परचे भया, एक बाहे समाय ।।...
kabir ke dohe
कबीरा संगति साधु की, हरे और की व्याधि । संगति बुरी असाधु की, आठो पहर उपाधि ।।...
कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय । खरी खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय...
कबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की वास । जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास...
ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय । नीचा हो सो भरिए पिए, ऊँचा प्यासा जाय ।।...
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊंच न होय । सुबरन कालस सुरा भरा, साधु निन्दा सोय...
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे, आपौ शीतल होय ।। अर्थ:...
एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार । है जैसा तैसा रहे, रहे कबीर विचार...
अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक होय । मानुष से पशुया भया, दाम गाँठ से खोय ।।...
उतने कोई न आवई, पासू पूछूँ धाय । इतने ही सब जात है, भार लदाय लदाय ।।...