कबीरा गरब न कीजिए, कबहुँ न हँसिये कोय ।
अजहूँ नाव समुद्र में, का जानै का होय ।।
अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य को कभी भी अपने ऊपर गर्व (घमंड)नहीं करना चाहिए और कभी भी किसी का उपहास नहीं करना चाहिए, क्योंकि आज भी हमारी नाव समुद्र में है । पता नहीं क्या होगा (डूबती है या बचती है) ।