समय के ऊपर कबीर के दोहे (kabir ke dohe for time in hindi)
कबीर गाफील क्यों फिरय, क्या सोता घनघोर
तेरे सिराने जाम खड़ा, ज्यों अंधियारे चोर।
अर्थ- कबीर कहते है की ऐ मनुष्य तुम भ्रम में क्यों भटक रहे हो? तुम गहरी नीन्द में क्यों सो रहे हो? तुम्हारे सिरहाने में मौत खड़ा है जैसे अंधेरे में चोर छिपकर रहता है।
कागा काय छिपाय के, कियो हंस का भेश
चलो हंस घर आपने, लेहु धनी का देश।
अर्थ- कौये ने अपने शरीर को छिपा कर हंस का वेश धारण कर लिया है। ऐ हंसो-अपने घर चलो। परमात्मा के स्थान का शरण लो। वही तुम्हारा मोक्ष होगा ।
काल जीव को ग्रासै, बहुत कहयो समुझाये
कहै कबीर मैं क्या करुॅ, कोयी नहीं पतियाये।
अर्थ- मृत्यु जीव को ग्रस लेता है-खा जाता है। यह बात मैंने बहुत समझाकर कही है। कबीर कहते है की अब मैं क्या करु-कोई भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करता है।
काल छिछाना है खड़ा, जग पियारे मीत
हरि सनेही बाहिरा, क्यों सोबय निहचिंत।
अर्थ- मृत्यु रुपी बाज तुम पर झपटने के लिये खड़ा है। प्यारे मित्रों जागों। परम प्रिय स्नेही भगवान बाहर है। तुम क्यों निश्चिंत सोये हो । भगवान की भक्ति बिना तुम निश्चिंत मत सोओ।
काल हमारे संग है, कश जीवन की आस
दस दिन नाम संभार ले,जब लगि पिंजर सांश।
अर्थ- मृत्यु सदा हमारे साथ है। इस जीवन की कोई आशा नहीं है। केवल दस दिन प्रभु का नाम सुमिरन करलो जब तक इस शरीर में सांस बचा है।
काल काल सब कोई कहै, काल ना चिन्है कोयी
जेती मन की कल्पना, काल कहाबै सोयी।
अर्थ- मृत्यु मृत्यु सब कोई कहते है पर इस मृत्यु को कोई नहीं पहचानता है। जिसके मन में मृत्यु के बारे में जैसी कल्पना है-वही मृत्यु कहलाता है।
कुशल जो पूछो असल की, आशा लागी होये
नाम बिहुना जग मुआ, कुशल कहाॅ ते होये।
अर्थ- यदि तुम वास्तव में कुशल पूछते हो तो जब तक संसार में आशक्ति है प्रभु के नाम सुमिरण और भक्ति के बिना कुशल कैसे संभव है।
काल फिरै सिर उपरै, हाथौं धरी कमान
कहै कबीर गहु नाम को, छोर सकल अभिमान।
अर्थ- मृत्यु हाथों में तीर धनुष लेकर सबों के सिर पर चक्कर लगा रही है। समस्त घमंड अभिमान छोड़ कर प्रभु के नाम को पकड़ो-ग्रहण करो-तुम्हारी मुक्ति होगी।
जाता है सो जान दे, तेरी दासी ना जाये
दरिया केरे नाव ज्यों, घना मिलेंगे आये।
अर्थ- जो जा रहा है उसे जाने दो-तेरा क्या जा राहा है? जैसे नदी में नाव जा रही है तो फिर बहुत से लोग तुम्हें मिल जायेंगे। आवा गमन-मृत्यु जन्म की चिंता नहीं करनी है।
चहुॅ दिस ठाढ़े सूरमा, हाथ लिये हथियार
सब ही येह तन देखता, काल ले गया मार।
अर्थ- चारों दिशाओं में वीर हाथों में हथियार लेकर खड़े थे। सब लोग अपने शरीर पर गर्व कर रहे थे परंतु मृत्यु एक ही चोट में शरीर को मार कर ले गये।
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गुरु जहाज हम पाबना,गुरु मुख पारि पराय
गुरु जहाज जाने बिना, रोबै घट खराय।
अर्थ- कबीर कहते है की मैंने गुरु रुपी जहाज को प्राप्त कर लिया है। जिसे यह जहाज मिल गया है वह निश्चय इस भव सागर को पार कर जायेगा। जिसे यह गुरु रुपी जहाज नहीं मिला वह किनारे खड़ा रोता रहेगा। गुरु के बिना मोक्ष संभव नहीं है।
चाकी चली गुपाल की, सब जग पीसा झार
रुरा सब्द कबीर का, डारा पात उखार।
अर्थ- परमात्मा के चलती चक्की में संसार के सभी लोग पिस रहे है। लेकिन कबीर का प्रवचन बहुत ताकतवर है। जो भ्रम और माया के पाट पर्दा को ही उघार देता है और मोह माया से लोगो की रक्षा हो जाती है।
बेटा जाय क्या हुआ, कहा बजाबै थाल
आवन जावन हवै रहा, ज्यों किरी का नाल।
अर्थ- पुत्र के जन्म से क्या हुआ? थाली पीट कर खुशी क्यों मना रहे हो? इस जगत में आना जाना लगा ही रहता है जैसे की एक नाली का कीड़ा पंक्ति बद्ध हो कर आजा जाता रहता है।
घड़ी जो बाजै राज दर, सुनता हैं सब कोये
आयु घटये जोवन खिसै, कुशल कहाॅ ते होये।
अर्थ- राज दरवार में घड़ी का घंटा बज रहा है। सभी लोग उसे सुन रहे है। लोगो की आयु कम हो रही है। यौवन भी खिसक रहा है-तब जीवन का कल्याण कैसे होगा।
चलती चाकी देखि के, दिया कबीरा रोये
दो पाटन बिच आये के, साबुत गया ना कोये।
अर्थ- चलती चक्की को देखकर कबीर रोने लगे। चक्की के दो पथ्थरों के बीच कोई भी पिसने से नहीं बच पाया। संसार के जन्म मरण रुपी दो चक्को के बीच कोई भी जीवित नहीं रह सकता है।
काल फिरै सिर उपरै, हाथौं धरी कमान
कहै कबीर गहु नाम को, छोर सकल अभिमान।
अर्थ- मृत्यु हाथों में तीर धनुष लेकर सबों के सिर पर चक्कर लगा रही है। समस्त घमंड अभिमान छोड़ कर प्रभु के नाम को पकड़ो-ग्रहण करो-तुम्हारी मुक्ति होगी।