कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह ।
अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ।।
अर्थ: जिस तरह कुम्हार बहुत ध्यान व प्रेम से कच्चे बर्तन को बाहर से थपथपाता है और भीतर से सहारा देता है । इसी प्रकार गुरु को चेले का ध्यान रखना चाहिए ।
अर्थ: जिस तरह कुम्हार बहुत ध्यान व प्रेम से कच्चे बर्तन को बाहर से थपथपाता है और भीतर से सहारा देता है । इसी प्रकार गुरु को चेले का ध्यान रखना चाहिए ।