कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं ।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ।।
अर्थ: भगवान प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में विद्यमान है परंतु सांसारिक प्राणी उसे देख नहीं पाता है । जिस प्रकार मृग की नाभि में कस्तूरी रहती है | परंतु वह उसे पाने के लिए इधर-उधर भागता है पर पा नहीं सकता और अंत में मर जाता है ।