प्रेम पियाला जो पिये, सीस दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।।
अर्थ: व्यक्ति प्रेमामृत से परिपूर्ण प्याले का पान करते हैं वह उस प्याले के मूल्य को चुकाने के लिए अपने मस्तक को दक्षिणा के रूप में अर्पित करते हैं अर्थात वह प्रेम के महत्व को भलीभाँति समझते हैं और उसकी रक्षा के हेतु अपना सब कुछ देने के लिए प्रस्तुत रहते हैं तथा जो व्यक्ति लोभी होता है (जिनके हृदय में प्रेम दर्शन करते हैं) ऐसे व्यक्ति प्रेम पुकारते रहते हैं । परंतु समय आने पर प्रेम के रक्षार्थ अपना मस्तक (सर्वस्व) अर्पण करने में असमर्थ होते हैं ।