क्रोध के ऊपर कबीर के दोहे (kabir ke dohe for Anger in hindi)
यह जग कोठी काठ की, चहुं दिश लागी आग
भीतर रहै सो जलि मुझे, साधू उबरै भाग।
अर्थ- यह संसार काठ के महल की भांति है जिसके चतुर्दिक आगलगी है। इसके अंदर का प्राणी जल मरता है पर साधु बचकर भाग जाता है। यहाँ क्रोध आग का परिचायक है। साधु समस्त क्रोध-विकार से वंचित है।
दसो दिशा से क्रोध की उठि अपरबल आग
शीतल संगत साध की तहां उबरिये भाग।
अर्थ- सम्पूर्ण संसार क्रोध की अग्नि से चतुर्दिक जल रहा है। यह आग अत्यंत प्रवल है। लेकिन संत साधु की संगति शीतल होती है जहाँ हम भाग कर बच सकते हैं।