बुद्धि के ऊपर कबीर के दोहे (kabir ke dohe for Intelligence in hindi)
जिनमे जितनी बुद्धि है, तितनो देत बताय
वाको बुरा ना मानिये, और कहां से लाय।
अर्थ- जिसे जितना ज्ञान एंव बुद्धि है उतना वह बता देते हैं। तुम्हें उनका बुरा नहीं मानना चाहिये। उससे अधिक वे कहाँ से लावें। यहाँ संतो के ज्ञान प्राप्ति के संबंध कहा गया है।
कोई निन्दोई कोई बंदोई सिंघी स्वान रु स्यार
हरख विशाद ना केहरि,कुंजर गज्जन हार।
अर्थ- किसी की निन्दा एंव प्रशंसा से ज्ञानी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता सियार या कुत्तों के भौंकने से सिंह पर कोई असर नहीं होता कारण वह तो हाथी को भी मार सकता है।
दुखिया मुआ दुख करि सुखिया सुख को झूर
दास आनंदित हरि का दुख सुख डारा दूर।
अर्थ- दुखी प्राणी दुख मे मरता रहता है एंव सुखी व्यक्ति अपने सुख में जलता रहता है पर ईश्वर भक्त हमेशा दुखसुख त्याग कर आनन्द में रहता है।
पाया कहे तो बाबरे,खोया कहे तो कूर
पाया खोया कुछ नहीं,ज्यों का त्यों भरपूर।
अर्थ- जो व्यक्ति कहता है कि उसने पा लिया वह अज्ञानी है और जो कहता है कि उसने खो दिया वह मूढ़ और अविवेकी है ईश्वर तत्व में पाना और खोना नहीं है कारण वह सर्वदा सभी चीजों में पूर्णत्व के साथ उपस्थित है।
हिंदु कहूँ तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहि
पंच तत्व का पूतला गैबी खेले माहि।
अर्थ- मैं न तो हिन्दु हूँ अथवा नहीं मुसलमान। इस पाँच तत्व के शरीर में बसने वाली आत्मा न तो हिन्दुहै और न हीं मुसलमान।
हिन्दू तो तीरथ चले मक्का मुसलमान
दास कबीर दोउ छोरि के हक्का करि रहि जान।
अर्थ- हिन्दू तीर्थ करने जाते हैं।मुसलमान मक्का जाते हैं। कबीर दास दोनो छोड़कर परमात्माके निवास आत्मा में बसते हैं।
अति का भला ना बोलना,अति की भली ना चूप
अति का भला ना बरसना, अति की भली ना धूप।
अर्थ- अधिक बोलना अथवा अधिक चुप रहना अच्छा नहीं होता जैसे की अधिक बरसना या अधिक धूप रहना अच्छा नहीं होता।
आबत सब जग देखिया, जात ना देखी कोई
आबत जात लखई सोई जाको गुरुमत होई।
अर्थ- बालक के जन्म को सब देखते हैं पर किसी की मत्य के बाद उसकी क्या दशा हुई-कोई नहीं जानता। आने-जाने के इस रहस्य को वही समझ पाता है जिसने गुरु से आत्म तत्व कर ज्ञान प्राप्त किया हो।
हिन्दू तुरक के बीच में मेरा नाम कबीर
जीव मुक्तवन कारने अबिकत धरा सरीर।
अर्थ- हिन्दू और मुस्लिम के बीच मेरा नाम कबीर है। मैंने अज्ञानी लोगों को अधर्म और पाप से मुक्त करने हेतु शरीर धारन किया है।
मांगन मरन समान है तोहि दयी मैं सीख
कहे कबीर समुझाइ के मति मांगे कोइ भीख।
अर्थ- कबीर शिक्षा देते हैं कि माँगना मृत्यु के समान है। कबीर समझाकर कहते है की कोई भी व्यक्ति भीख नहीं माँगे। यहाँ कबीर कर्मशील बनने की शिक्षा देते है।
तन का बैरी काई नहीं जो मन सीतल होय
तु आपा का डारि दे दया करे सब कोय।
अर्थ- यदि आप अपने मन को शांत एंव शीतल रखें तो कोई भी आपका दुश्मन नहीं होगा यदि आप अपनी प्रतिष्ठा एंव घमंड को दूर रखें तो सारा संसार आपको प्रेम करेगा।
तरुबर पात सो यूँ कहे सुनो पात एक बात
या घर यही रीति है एक आबत एक जात।
अर्थ- वृक्ष पत्तों से एक बात सुनने का आग्रह करता है की यहाँ संसार में एक आने और जाने का रिवाज है। जीवन एंव मृत्यु का यह चक्र अविरल चलता रहता है।
कबीर गर्व ना कीजिये उंचा देखि आवास
काल परौ भुयी लेटना उपर जमसी घास।
अर्थ- कबीर अपने उँचें गृह आवास को देखकर घमंड नहीं करने की सलाह देते हैं। संभव है कल्ह तुम्हें जमीन पर लेटना होगा जिस पर घास उगेंगे
चिउटी चावल ले चली बीच मे मिलि गयी दाल
कहे कबीर दौउ ना मिलै एक लै दूजी दाल।
अर्थ- चींटी चावल का दाना लेकर चली तो बीच में उसे दाल मिला पर वह दोनों नहीं पा सकती है। उसे एक छोड़ना पड़ेगा। प्रभु भक्तिके लिये उसे संसारिक माया-मोह छोड़ना होगा।
तन का बैरी कोई नहीं जो मन सीतल होये
तु आपा को डारी दे, दया करै सब कोई।
अर्थ- यदि तुम्हारा मन शांत,निर्मल एंव पवित्र है तो तुम्हारा कोई शत्रु नही है। यदि तुमने अपने मान-समान-अभिमान का परित्याग कर दिया है तो सारा संसार तुमसे प्रेम करेगा।
पाहन ही का देहरा पाहन ही का देव
पूजनहारा आंधरा क्यों करि माने सेव।
अर्थ- पथ्थर के बने मंदिर में भगवान भी पथ्थर के हीं हैं। पूजारी अंधे की तरह विवेकहीन है तो ईश्वर उसकी पूजा से कैसे प्रसन्न होंगे।
मन चलता तन भी चले, ताते मन को घेर
तन मन दोई बसि करै, राई होये सुमेर।
अर्थ- शरीर मन के अनसार क्रियाशील है। अतः पहले मन पर नियंत्रन करें जो व्यक्ति अपने मन और शरीर दोनो का नियंत्रन कर लेता है वह शीघ्र ही एक अन्न के दाने से सुमेरु पर्वत के समान वैभवशील हो सकता है।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
कहे कबीर गुरु पाइये,मन ही के परतीत।
अर्थ- यदि मन से उत्साह पूर्वक जीत अनुभव करते हैं तो अवश्य आप की जीत होगी। यदि आप हदय से गरु की खोज करेंगे तो निश्चय ही आपको सदगुरु मिलकर रहेंगे।
जेती लहर समुद्र की, तेती मन की दौर
सहजय हीरा नीपजय, जो मन आबै ठौर।
अर्थ- समुद्र मे जिस तरह असंख्य लहरें उठती है उसी प्रकार मन विचारों कर अनगिनत तरंगे आती-जाती है। यदि अपने मन को सहज, सरल और शांत कर लिया जाये तो सत्य का ज्ञान संभव है।
चिउटी चावल ले चली बीच मे मिलि गयी दाल
कहे कबीर दौउ ना मिलै एक लै दूजी दाल।
अर्थ- चींटी चावल का दाना लेकर चली तो बीच में उसे दाल मिला पर वह दोनों नहीं पा सकती है। उसे एक छोडना पड़ेगा। प्रभु भक्तिके लिये उसे संसारिक माया-मोह छोड़ना होगा।
जहां काम तहां नाम नहीं,जहां नाम नहि काम
दोनो कबहु ना मिलैय रवि रजनी एक ठाम।
अर्थ- जहाँ काम, वसाना, इच्छा हो वहाँ प्रभु नहीं रहते और जहाँ प्रभु रहते है वहाँ काम, वासना, इच्छा नहीं रह सकते। । इन दोनों का मिलन असंभव है जैसे सुर्य एंव रात्रि का मिलन नहीं हो सकता।