तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँव तले भी होय ।
कबहुँ उड़ आँखों पड़े, पीर घनेरी होय ।।
अर्थ: तिनके का भी अनादर नहीं करना चाहिए । चाहे वह हमारे व तुम्हारे पग के नीचे ही क्यों न हो यदि वह नेत्र में आकार गिर जाए तो बड़ा दुखदायी होता है । भाव इसका यह है कि तुच्छ वस्तुओं को निरादर की दृष्टि से मनुष्य को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी वही दुखदायी बन जाते हैं ।