चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार ।
वाके अङ्ग लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ।।
अर्थ: साधु चन्दन के समान है और सांसारिक विषय वासना सर्प की तरह है । जिसमें पर विष चढ़ता हि रहता है सत्संग करने से कोई विकार पास नहीं आता है । क्या विषयों में फँसा हुआ मनुष्य कभी किसी प्रकार पार पा सकता हैं ?