अपने-अपने साख की, सब ही लिनी भान ।
हरि की बात दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ।।
अर्थ: हरि का भेद पाना बहुत कठिन है पूर्णतया कोई भी न पा सका । बस जिसने यह जान लिया कि मैं सब कुछ जानता हूँ मेरे बराबर अब इस संसार में कौन है, इसी घमंड में होकर वास्तविकता से प्रत्येक वंचित ही रह गया ।